वन्दे जननी भारत धरणी
वन्दे जननी भारत-धरणी
शस्य श्यामला प्यारी।
नमो नमो सब जग की जननी
कोटि-कोटि सुतवारी॥
उन्नत सुन्दर भाल हिमाऽचल हिममय मुकुट विराजे उज्ज्वल।
चरण पखारे विमल सिंधु-जल श्यामल अंचल धारी ॥ वन्दे ० ॥ १ ॥
गंगा यमुना सिंधु नर्मदा देती पुण्य पियुष सर्वदा ।
मथुर मायापुरी द्वारिका विचरे जहँ मुरारी ॥वन्दे ०॥२॥
कल्याणी तू जग की मित्रा नैसर्गिक सुषुमा सुविचित्रा।
तेरी लीला सुभग पवित्रा गुरुवर मुनिवर-धारी॥वन्दे ०॥३॥
मंगल-करणी संकट-हरणी दारिदहरणी विज्ञानवितरणी॥
ऋषि-मुनि शुरजनों की धरणी हरती भ्रम-तम भारी॥वन्दे ०॥४॥
शक्तिशालिनी दुर्गा तू है विभवपालिनी लक्ष्मी तू है।
बुद्घिदयिनी विद्या तू है सब सुख् सिरजनहरी॥ वन्दे ०॥५॥
जग में तेरे जिये जियेंगे तेर प्रेम-पियूष पियेंगे।
तेरी सेवा सदा करेंगे तेरे सुत बल-धरी॥ वन्दे ०॥ ६॥

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